समाजशास्त्र का अर्थ, प्रकृति, परिपेक्ष्य एवं सहसम्बंध
समाजशास्त्र का अर्थ प्रकृति: समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है जिसका मुख्य उद्देश्य मानव समाज की सामाजिक संरचना का अध्ययन करना है। समाजशास्त्रीय अध्ययन की परंपरा यूरोप में लगभग 200 वर्ष पहले ही शुरू हो पायी। इसके पहले जो भी अध्ययन हुए उसमें समाजशास्त्राीय तरीके द्वारा अध्ययन नहीं हुए परंतु फिर भी उन अध्ययनों में समाज को केन्द्र बनाकर सामाजिक परिस्थितियों तथा मानवीय व्यवहार का अध्ययन किया गया। Meaning of Sociology

Sociology (समाजशास्त्र) का जनक फ्रांस के दार्शनिक अगस्त कॉम्टे को माना जाता है। अगस्त कॉम्टे प्रथम विचारक है जिन्होंने एक व्यवस्थित विज्ञान के रूप में समाजशास्त्र विषय का निर्माण उन्नीसवीं शताब्दी के पूर्वार्द्ध में किया। इनको मानवीय तथा सामाजिक एकता पर बल देने वाला प्रथम समाजशास्त्री माना जाता है।
अगस्त कॉम्टे ने समाजशास्त्र के अध्ययन के सम्बंध में 1838 में सामाजिक भौतिकी शब्द का उपयोग किया।
Meaning of Sociology समाजशास्त्र का अर्थ
समाजशास्त्र को अंग्रेजी में Sociology कहते है। समाजशास्त्र शब्द की व्युत्पति दो शब्दों से मिलकर हुई है जिसमें पहले शब्द ‘सोसियस’ (Socius) लैटिन भाषा से और दूसरा शब्द ‘लोगस’ (Logus) ग्रीक भाषा से लिया गया है। इस प्रकार समाजशास्त्र का शाब्दिक अर्थ समाज का शास्त्र या समाज का विज्ञान है।
समाजशास्त्र वह विज्ञान है जिसमें समाज का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।
सामाजिक जीवन के बारे में व्यवस्थित अध्ययन यूनानी विचारक प्लेटों (रिपब्लिक) तथा अरस्तु (इथिक्स एण्ड पालिटिक्स) द्वारा किया गया। यहीं से समाजशास्त्र का विकास प्रारम्भ हुआ। 1843 में जे.एस. मिल ने इंग्लैण्ड में समाजशास्त्र का विकास किया। इन्होने Sociology की जगह Ethologh शब्द का प्रयोग किया।
भारत में 1914 में बम्बई विश्वविद्यालय में Sociology का अध्ययन प्रारम्भ हुआ। तथा विश्वविद्यालय में 1919 में पृथक समाजशास्त्र विभाग की स्थापना की गई। 1917 में कलकता विश्वविद्यालय में भी स्नातक स्तर पर समाजशास्त्र का अध्ययन प्रारम्भ किया गया।
भारत में Sociology के विकास में राधाकमल मुखर्जी व जी.एस. घुरये का महत्वपूर्ण योगदान है। जी.एस. घुरये ने 1952 में ‘‘India Sociological Society‘‘ की स्थापना की तथा ‘‘Sociological Bulletin‘‘ का प्रकाशन प्रारम्भ किया।
समाजशास्त्र की प्रकृति
Sociology की विषय वस्तु एवं प्रकृति के सम्बंध में समाजशास्त्री एकमत नहीं है इस कारण इन्हें दो सम्प्रदायों में बांटा जाता है
(1) स्वरूपात्मक सम्प्रदाय (2) समन्वयात्मक सम्प्रदाय
(1) स्वरूपात्मक सम्प्रदायः- इसके समर्थक समाज के अमूर्त स्वरूप के अध्ययन पर बल देते है। इसके प्रवर्तक जॉर्ज सिमेल है तथा इसके समर्थक वीरकांत, मैक्स बैवर, बर्गेश, टॉनीज, वानजीव, वोगल व स्माइल रिचार्ड है।
वार्डः- “समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है।“
दुखीमः- “समाजशास्त्र समाज के अध्ययन का विज्ञान है।“
मैक्स बैवरः- “समाजशास्त्र वह विज्ञान है जो सामाजिक क्रियाओं का विश्लेषणात्मक बोध कराने का प्रयत्न करता है।“
गिडिंग्स :- “समाजशास्त्र समाज का वैज्ञानिक अध्ययन है।“
नोटः- सी. डब्ल्यू मिलः- इन्होनें समाजशास्त्र को विज्ञान मानने की अपेक्षा एक कला मानने का तर्क दिया है।
समाजशास्त्री रॉबर्ट बीरस्टीड ने समाजशास्त्र की वास्तविक प्रकृति वैज्ञानिक बताई है। इनके अनुसार –
- समाजशास्त्र एक सामाजिक विज्ञान है, प्राकृतिक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक वास्तविक (निश्चयात्मक) विज्ञान है, आदर्शात्मक विज्ञान नहीं।
- Sociology (समाजशास्त्र) एक विशुद्ध विज्ञान है, व्यावहारिक विज्ञान नहीं।
- समाजशास्त्र एक अमूर्त विज्ञान है, मूर्त नहीं।
- समाजशास्त्र एक सामान्य विज्ञान है, विशेष नहीं।
- Sociology (समाजशास्त्र) एक तार्किक, अनुभव सिद्ध विज्ञान है (तर्क व अनुभव पर आधारित)
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य
परिप्रेक्ष्य अंग्रेजी के PERSPECTIVE शब्द का हिन्दी रूपांतरण है। यह शब्द लैटिन भाषा के Perspecct शब्द से बना है जिसका अर्थ होता है- उपर से नीचे तक देखना। समाज विज्ञान में इसका अर्थ प्रारम्भ से अंत तक देखना या निरीक्षण करना होता है। विद्वानों के किसी विषय के बारे में अपने – अपने विचारों, दृष्टिकोणों और राय को ही परिप्रेक्ष्य कहा जाता है।
समाजशास्त्रीय परिप्रेक्ष्य की प्रकृति को दो भागों में बांटा जाता है –
(1) वैज्ञानिक परिप्रेक्ष्यः– मानवीय व्युवहार कुछ वैज्ञानिक नियमों एवं प्रविधियों के अनुसार सम्पन्न होता है अतः मानवीय व्यवहार में कार्य कारण सम्बंध पाया जाता है। इस कारण इसकी भविष्यवाणी की जा सकती है। इसमें वस्तु परक अध्ययन पर बल दिया जाता है। इसमें क्या है, क्यों है, कैसे है आदि के अध्ययन पर अधिक बल दिया जाता है।
(2) मानवतावादी परिप्रेक्ष्यः- यह उपागम मानवीय व्यवहार का सामाजिक यथार्थ में अध्ययन करने पर बल देता है। इसमें विषय परक और व्यक्ति परक अध्ययन पर बल दिया जाता है। यह दृष्टिकोण समाजशास्त्रीय ज्ञान का उपयोग जन साधारण के हितों के लिए करने पर बल देता है।
मानवः- व्यवहार के अध्ययन करने हेतु इस उपागम में निम्न उपागमों को अपनाया जाता है-
(1) एथनोमेथोडोलोजीः- इसमें सामाजिक यथार्थ का प्रत्यक्ष् अध्ययन दिन-प्रतिदिन की क्रियाओं का अध्ययन करके किया जाता है।
(2) प्रघटनाः- इसमें मानवीय व्यवहार को दो स्तरों पर समझा जाता हैः-
- सम्मिलित अनुभव – सामान्यीकरण।
- विशिष्ट अनुभव :- विशिष्टकरण।
(3) आमूल परिवर्तनवादः- यह व्यवस्था का विरोध करता है एवं परिवर्तन का समर्थन करता है।
(4) प्रतीकात्मक अन्तः क्रियाः- इसमें संकेतों, प्रतीकों एवं चिह्नों का उपयोग किया जाता है। इसमें भाषा व हाव-भाव को अन्तः क्रियाओं का प्रमुख आधार माना जाता है।
समाजशास्त्र का अन्य समाज विज्ञानों के साथ सम्बंध
समाजशास्त्र में मनुष्य की सम्पूर्ण सामाजिक क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है अर्थात् समाज का अध्ययन किया जाता है।
(1) मानव शास्त्र – इसमें आदिम समात्रों का अध्ययन किया जाता है।
(2) अर्थशास्त्र – इसमें मनुष्य के आर्थिक व्यवहार एवं क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
(3) इतिहासः- अतीत की घटनाओं का क्रमबद्ध एवं व्यवस्थित अध्ययन किया जाता है।, समाजशास्त्र को वर्तमान का इतिहास व इतिहास को अतीत का समाजशास्त्र कहा जाता है।
(4) मनोविज्ञानः- इसमें मनुष्य की मानसिक, क्रियाओं का अध्ययन किया जाता है।
(5) भूगोलः- इसमें भौतिक पर्यावरण एवं परिस्थितियों का अध्ययन किया जाता है।
(6) दर्शनशास्त्रः- इसमें मनुष्य की प्रकृति का अध्ययन किया जाता है।
(7) अपराध शास्त्रः- इसमें अपराध का अध्ययन किया जाता है।
(8) राजनीतिक विज्ञानः- इसमें मानव के राजनीतिक व्यवहार का अध्ययन किया जाता है।
समाजशास्त्र समाज का विज्ञान है। यह एक विषय है जिसमें मानव समाज के विभिन्न स्वरूपों, उसकी संरचनाओं, प्रक्रियाओं इत्यादि का वस्तुनिष्ठ एवं क्रमबद्ध रूप से अध्ययन किया जाता है, ये अन्य विषयों की तरह एक स्वतंत्र विषय है, इस प्रकार जब हम समाजशास्त्र को समाज का विज्ञान कहते है तो हमारा तात्पर्य ऐसे विषय से है जो समाज तथा इसके विभिन्न पहलुओं का क्रमबद्ध अध्ययन करता है।
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